ग्राउंड रिपोर्ट / पूर्वी सिंहभूम व पश्चिमी सिंहभूम की 13 सीटों पर क्या हैं मुद्दे, इस बार जनता क्या सोचकर चुन रही है अपना प्रतिनिधि

पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम ( शशिभूषण ).  गोड़ा... स्थानीय भाषा में ऊंची जमीन के उस टुकड़े को कहते हैं जहां छिटुआ धान की खेती होती है। विधिवत रोपनी नहीं हो सकती। बारिश हुई तो उपज हुई। नहीं हुई तो खाली हाथ। यानी इस जमीन पर किसानी ऊपर वाले के हवाले है। पूर्वी सिंहभूम की छह सीटों का चुनावी परिदृश्य भी 'गोड़ा' जैसा ही है। पूरब और उत्तर में क्रमश: पश्चिम बंगाल का झाड़ग्राम व पुरुलिया जिला है तो दक्षिण में ओडिशा का मयूरभंज। इस भूगोल को लोगों ने बोलचाल में विछिन्नांचल का नाम भी दे रखा है क्योंकि बहरागोड़ा से चक्रधरपुर तक के लोग मानते हैं कि हम ओडिशा के बिछड़े हिस्से हैं। इलाका आयरन, यूरेनियम, कॉपर सरीखे खनिज से भरपूर है। हिन्दुस्तान कॉपर लि., यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लि. की माइन्स हैं। फिर भी पूर्वी सिंहभूम की गिनती देश के पिछड़े जिलों में है। हर प्रत्याशी विकास की बातें बखूबी कर रहा है। सामान्य सीटों पर संघर्ष कमोबेश सीधा है तो हर सुरक्षित सीट पर तीसरा कोण मौजूद है। कई सीटों पर प्रत्याशियों ने झंडे बदले हैं लेकिन हवा लोकसभा चुनाव जैसी नहीं है। नतीजा, प्रचार से अधिक बूथ प्रबंधन से निकलेगा।



जमशेदपुर पूर्वी सीट से मुख्यमंत्री रघुवर दास को निर्दलीय सरयू राय, कांग्रेस के गौरव वल्लभ, झाविमो के अभय सिंह से चुनौती मिल रही है। इलाके के लोग मुख्यमंत्री का काम गिनाते हैं। लेकिन उनके नाम पर कुछ लोगों द्वारा की गई मनमानी का जिक्र करना भी नहीं भूलते। बिरसानगर के हुरलुंग में कुछ मकान तोड़े जाने का मुद्दा गर्म है। 86 बस्तियों के मालिकाना हक का भी सवाल है। सरयू राय की बगावत ने इन मुद्दों को और तान दिया है। हालांकि सीएम के लिए बड़ा इत्मीनान पार्टी का संगठन है। लोकसभा चुनाव में यहां मिली 1 लाख से अधिक मतों की बढ़त को बरकरार रखना भाजपा के लिए भारी चुनौती है। सीएम 28 नवंबर से क्षेत्र में कैंप किए हैं। प्रचार के लिए निकलते भी हैं तो रात को लौट आते हैं।


पोटका- शहर और गांव की जुगलबंदी से जीत की राह


करनडीह चौक पर शहर और गांव की हवा टकराती है। यहीं से शुरू होता है पोटका विधानसभा क्षेत्र। यहां भाजपा की मेनका सरदार व झामुमो के संजीव सरदार की पुरानी चुनावी प्रतिद्वंद्विता को आजसू की बुलू रानी सिंह अपनी ओर मोड़ने की कोशिश में हैं। बुलू रानी जिला परिषद अध्यक्ष हैं। पोटका में ज्वालकाटा पंचायत की महिलाओं की टोली बस के इंतजार में थी। बातचीत में बोली- हमको गैस मिला है। दो ठो सिलेंडर भी मिलता है। लेकिन खाना लकड़ी चूल्हा पर पकाते हैं। गैस भराने में बड़ी परेशानी होती है। शहर की बागबेड़ा कॉलोनी भाजपा का गढ़ है। बीते चुनाव में गांव में पिछड़ने के बावजूद भाजपा को यहां मिले थोक वोटों के बूते जीत मिली थी। झामुमो ने यदि यहां सेध लगा ली तो नतीजा पलट सकता है। 
 


चक्रधरपुर- गिलुवा के लिए झामुमो-झाविमो-आजसू चुनौती


चक्रधरपुर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ फिर कड़े मुकाबले में फंसे हैं। झामुमो के सुखराम उरांव, आजसू के रामलाल मुंडा और झाविमो के शशिभूषण सामड़ ने मजबूत घेराबंदी कर रखी है। सामड़, झामुमो के विधायक थे। पार्टी के आधार मतों में ही सेंधमारी कर रहे हैं। हालांकि, पार्टी संगठन में व्यापक विरोध की वजह से ही वह बेटिकट भी हुए थे। यह परिदृश्य गिलुआ को थोड़ा इत्मीनान देता है लेकिन आजसू के रामलाल की मजबूत उपस्थिति यहां भाजपा की ताकत सोखती नजर आती है। भाजपा-आजसू संबंधों में जिन सीटों को लेकर खटास पैदा हुई उनमें चक्रधरपुर की सीट भी एक थी। यहां झामुमो, आजसू और भाजपा में त्रिकोणीय संघर्ष है।


 कोल्हान की सीटों पर कहीं आमने-सामने की टक्कर है, तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबले की भी तस्वीर बन रही है। कुछ सीटों पर भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने नजर आती है, तो कुछ सीटों पर भाजपा-झामुमो। आजसू भी सीटें बढ़ाने की जी-तोड़ कोशिश मंे लगी है, वहीं झारखंड विकास मोर्चा भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को बेचैन है।  किसने, किसका खेल बिगाड़ा और कौन-कितना आगे निकला, यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल पाएगा।


घाटशिला


घाटशिला रेलवे स्टेशन से आगे फूलडुंगरी से चमचमाती सड़क बहरागोड़ा की ओर जाती है। बहरागोड़ा में झारखंड से बंगाल और ओ़डिशा की सीमा लगती है। कालियाडांगा चौक से 7 किमी दूर ओ़डिशा है, तो 14 किमी पूरब पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जिले का चिचड़ा ग्राम। क्षेत्र में वोटों की गोलबंदी आधार भाषाई विभाजन भी है। विधानसभा क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से उड़िया और बांग्ला का सम्मिश्रण है। यहां भाजपा के कुणाल षाड़ंगी और झामुमो के समीर मोहंती के बीच मुख्य मुकाबला है, वैसे यहां मैदान में 14 प्रत्याशी है। कुणाल और मोहंती ने ऐन चुनाव के वक्त पार्टी बदली है। कुणाल झामुमो से भाजपा में आए तो मोहंती भाजपा से झामुमो में। एक मामले में मोहंती भूमिगत हैं। लेकिन फोन से जनसभाओं में वोट की अपील कर रहे हैं। उन्हें सहानुभूति भी मिल रही है। 
 


जुगसलाई


जुगसलाई विधानसभा के वीर कुंवर सिंह चौक को लोग घोड़ा चौक भी कहते हैं। यहां घोड़े की प्रतिमा है। मंत्री रामचंद्र सहिस आजसू के प्रत्याशी हैं। भाजपा के मुची राम बाउरी भी हैं, तो झामुमो के मंगल सिंह कालिंदी। मुख्य मुकाबला इन्हीं तीनों के बीच है। बाउरी का मुख्य आधार शहरी इलाकों में ही है। मत भाजपा की ओर मुड़े तो सहिस परेशान हो सकते हैं। गठबंधन के तहत यह वोट उनका एकमुश्त आधार हुआ करता था। झामुमो के मंगल कालिंदी संसाधनों के मोर्चे पर थोड़े पिछड़े हैं। इसे दुरुस्त कर ले गए तो पासा पलट सकते हैं।  
 


खरसावां


खरसावां में झामुमो के दशरथ गागराई और भाजपा के जवाहर बानरा के बीच सीधी लड़ाई है। गागराई जायंट किलर रहे हैं, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को पिछले चुनाव में हरा चुके हैं। इस सीट से मंगल सिंह सोय और मीरा मुंडा भी दावेदार थीं लेकिन टिकट बानरा झटक ले गए। वह चाईबासा के पूर्व विधायक रहे हैं। खरसावां में घर होने के बावजूद इलाके में लोग उन्हें पैराट्रूपर उम्मीदवार मान रहे हैं। यहां भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त मिली थी। छह माह पहले वाला परिदृश्य दोहराया गया तभी बानरा इत्मीनान में रह सकेंगे, नहीं तो दिक्कत में फंसेंगे। यहां आजसू के संजय जारिका भी हैं और इलाके में 15-20 हजार कुड़मी वोटर हैं


सरायकेला


सरायकेला में झामुमो के चंपई सोरेन और भाजपा के गणेश महली में सीधी टक्कर है। पिछले चुनाव में महली मामूली वोटों के अंतर से हारे थे। लोकसभा चुनाव में यहां चंपई भारी अंतर से पिछड़ गए थे। विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट खूंटा थामे रहे तो चंपई की चौथी जीत आसान नहीं होगी। वैसे, यहां आजसू के टिकट पर भाजपा के पूर्व विधायक अनंत राम टुडू भी हैं। टुडू असरदार हुए तो सीन पलट सकता है।
 


चाईबासा


चाईबासा में भाजपा के जेबी तुबिद, झामुमो के दीपक बिरुआ फिर आमने-सामने हैं। तुबिद पिछले चुनाव में बड़ी मार्जिन से पराजित हुए थे। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा यहां पिछड़ी थी। पिछले और इस चुनाव में फर्क यह है कि हारने के बावजूद तुबिद क्षेत्र में डटे रहे। उनकी यह मौजूदगी गांवों में कितना गैप पाटेगी, कहना मुश्किल है,क्योंकि वहां झामुमो के झंडे अधिक दिखते हैं। झाविमो की चांदमनी बालमुचू का भी ग्रामीण क्षेत्रों में आधार है। वे कांग्रेस में थीं, बगावत कर चुनाव लड़ रहीं हैं। चांदमनी, जितनी असरदार होंगी, झामुमो को उतना ही नुकसान होगा। ऐसे में तुबिद की राह आसान होगी।  


जगन्नाथपुर


जगन्नाथपुर, कोड़ा दंपती की पारंपरिक सीट रही है। भाजपा से टिकट पाए सुधीर सुंडी कभी कोड़ा कैम्प में ही हुआ करते थे। यहां भाजपा के टिकट के दावेदार थे मंगल सिंह सुरीन। पिछला चुनाव भी लड़े थे और दूसरे स्थान पर थे। टिकट नहीं मिला तो पार्टी छोड़ दी और आजसू के प्रत्याशी बन गए। गठबंधन के तहत सीट कांग्रेस के पास है और प्रत्याशी हैं सोनाराम सिंकू। सिंकू, की नैया पार लगेगी तो कोड़ा दंपती के बूते। गीता और मधु कोड़ा सिंकू के लिए जमकर प्रचार कर रहे हैं। टिकट के दावेदार कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सनी सिंकू भी थे। बगावत कर तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। चोट अपनी पुरानी पार्टी को ही पहुंचा रहे हैं। वैसे, मुख्य मुकाबला यहां सिंकू और सुरीन के बीच ही दिखाई दे रहा। हालांकि, सुंडी भी अपने लिए जगह बनाने में जुटे हैं। झाविमो के प्रत्याशी मंगल सिंह बोबोंगा को यहां कमतर नहीं आंका जा सकता। बोबोंगा पूर्व विधायक रह चुके हैं। कोड़ा फैक्टर काम किया तो सिंकू निकल जाएंगे। वैसे सबकी नजर पर कोड़ा के वोट बेस पर ही है। सेंध लगी तो बाजी सुरीन समेत किसी दूसरे के हाथ लग सकती है।
 


जमशेदपुर पश्चिमी में भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने


जमशेदपुर पश्चिमी क्षेत्र में भाजपा के दवेंद्र सिंह और कांग्रेस के बन्ना गुप्ता में ही अंतत: आमने-सामने की लड़ाई होगी। यह वही क्षेत्र है,जहां से बेटिकट होने के बाद सरयू राय ने मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान किया। देवेन्द्र सिंह भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं। जिला अध्यक्ष भी रहे हैं, लेकिन पार्टी के पक्ष में हवा बनाने में उन्हें एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है। आजसू के बृजेश सिंह ने आधार मतों में सेंधमारी की, तो देवेंद्र परेशान हो सकते हैं। हालांकि उन्हें इस बात का इत्मीनान  है कि ओवैसी की पार्टी का उम्मीदवार भी मैदान में है।
जमशेदपुर शहर पार करते ही आदित्यपुर का इलाका शुरू होता है। टाटा की एंसिलरी यूनिट का क्षेत्र। 500 से अधिक छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं। टाटा मोटर्स जब-जब ब्लाक क्लोजर लेती है। सीधा असर इस इलाके में पड़ता है। अब तक 8000 कर्मियों की नौकरी जा चुकी है। यह क्षेत्र सरायकेला विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। बावजूद इसके यह चुनावी मंच का मुद्दा नहीं बना। हां, टीस उनके दिलों में गहरी है जिनकी रोजी-रोटी गई है। सरायकेला-खरसांवा व पश्चिम सिंहभूम देश के सर्वाधिक कुपोषित जिलों में शामिल है, काम की तलाश में लोग पंजाब व दिल्ली चले गए हैं। इलाके में गुआ, मेधाहातुबुरू, चिरिया, नोवामुंडी समेत आयरन ओर की 40 खदानें हैं पर बेरोजगारी व कुपोषण जैसे सवाल भी चुनावी बहस से कोसों दूर है। लड़ाका कोल आदिवासी बहुल इन सीटों के गंवई इलाकों में एक बात आम है- जोर जार मुलुक तार... जिसमें जोर होगा, मुल्क उसी का होगा। सरायकेला से मनोहरपुर और बंदगांव से मझगांव के सुदूर गांवों में सिंहभुमिया ओड़िया की इस कहावत की गूंज आम है। कादो कोड़ा के विजय नायक ने हमें समझाया और बताया कि जिन सात सीटों की बातें आप कर रहे हैं उनमें हर सीट बगावत की शिकार है। लिहाजा जिसमें जोर होगा, वही चुनावी वैतरणी पार करेगा। कादो कोड़ा से बमुश्किल 1 किमी दूर है वैतरणी नदी। यह नदी ही झारखंड और ओडिशा के क्योंझार जिला की सीमा तय करती है।
 


मनोहरपुर


मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुकी झामुमो की जोबा मांझी के समक्ष गढ़ बचाने की चुनौती है। आजसू के बिरसा मुंडा का आधार जंगल का वही इलाका है जिसे जोबा अपना गढ़ मानती रही हैं। यहां भाजपा के प्रत्याशी हैं गुरुचरण नायक। भाजपा से ही बगावत कर जदूय के टिकट पर मैदान में उतर गई हैं डिंपल मुंडा। बिरसा, जोबा की दिक्कत हैं तो गुरुचरण की परेशानी हैं डिंपल। जोबा और गुरुचरण में से जो आधार मतों में बिखराव बचा ले जाएगा, बाजी उसी के हाथ होगी। लड़ाई कांटे की है। यहां कदमडीहा पंचायत के नुंगड़ी बूथ संख्या 47,48 को री-लोकेट कर 10 किमी दूर नरसंडा मध्य विद्यालय में शिफ्ट कर दिया गया है। नुंगड़ी बूथ से तीन गांव, साइतोपा, नुंगड़ी और काशीजोड़ा जुड़े हैं। यहां 1200 से अधिक वोटर हैं, जिन्होंने वोट बहिष्कार करने की घोषणा है। नुंगड़ी के विनय जामुदा कहते हैं, जिन गांवों का बूथ शिफ्ट किया गय है, वह शांत इलाका है। और जहां हमे वोट देने के लिए भेजा जा रहा है वह अति नक्सल प्रभावित इलाका है। गांव के लोगों ने डीसी से लेकर चुनाव आयुक्त से शिकायत की पर गुहार अनसुनी कर दी गई। लोकसभा में भी ऐसा ही हुआ था।


मझगांव 


 मझगांव विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के भूपेंद पाटपिंगुआ और झामुमो के निरलपूर्ति बीच सीधे मुकाबले को निर्दलीय मैदान में उतरे पूर्व मंत्री बड़कुंवर गागराई कुतरने की पुरजोर कोशिश में हैं।गागराई का ही टिकट काट कर पाटपिंगुआ, जो आदिवासी हो समाज महासभा के जिला अध्यक्ष हैं, को टिकट मिला। वह पहले पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के करीबी थे। ऐन टिकट के मौके पर भाजपा में शामिल हुए, नतीजा हुआ कि पार्टी संगठन के बड़े हिस्से ने बगावत कर दी और बड़कुंवर के साथ हो लिए। मुकाबला त्रिकोणीय है। गागराई जितने ताकतवर होंगे, पाटपिंगुआ की परेशानी उतनी ही बढ़ेगी क्योंकि झामुमो के वोट में सेंधमारी होती नहीं दिखती है।


घाटशिला- प्रदीप बलमुचू के उतरने से रोचक हुआ मुकाबला


घाटशिला में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू की बगावत ने चुनाव को रोचक बना दिया है। वह आजसू उम्मीदवार हैं। क्षेत्र के पुराने खिलाड़ी हैं पर पार्टी नई है। भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी बदल दिया है। 2014 में यहां से लक्ष्मण टुडू जीते थे लेकिन इस बार टिकट लखन मार्डी को मिला है। बस रामदास सोरेन ही ऐसा चेहरा है जो पिछली बार भी झामुमो के उम्मीदवार थे, इस बार भी हैं। बालमुचू का पार्टी बदलना और भाजपा का प्रत्याशी बदलना दोनों के लिए कितना फायदेमंद होगा यह नतीजा बताएगा। इलाके में बंद राखा कॉपर माइन्स भी एक मुद्दा है। माइन्स को चालू करने की घोषणा 2 फरवरी 2019 को हुई थी लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।