नई दिल्ली (प्रवीण के. लहरी, पूर्व मुख्य सचिव, गुजरात) डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रमुख सचिव बनना गुजरात कैडर के सभी आईएएस अधिकारियों के लिए गौरव की बात है। साल 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तब ही यह माना जा रहा था कि डॉ. मिश्रा को प्रमुख सचिव पद की जिम्मेदारी मिल सकती है। हालांकि उस समय नृपेंद्र मिश्रा प्रमुख सचिव बने। बहरहाल, साल 2001 में जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने डॉ. मिश्रा को प्रमुख सचिव के रूप में पसंद किया था। मिश्रा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के साथ 3 साल बहुत अच्छा काम किया।
11 अगस्त 1948 को जन्मे प्रमोद मिश्रा को उनके करीबी दोस्त 'बाबू' के नाम से पुकारते हैं। डॉ. मिश्रा जब गुजरात कैडर से जुड़े और प्रशिक्षण के लिए आए तो, मैंने उन्हें और उनके सभी बैचमेट्स को अपने वडोदरा निवास पर चाय के लिए आमंत्रित किया। तब उन्होंने खुद ही काफी बींस का पाउडर बनाया और उसे गर्म पानी में मिलाकर स्वादिष्ट कॉफी बनाई थी। उनका यूं कॉफी बनाना बताता है कि वे हर वस्तु का श्रेष्ठ निकाल कर उसके उम्दा प्रयोग करने की विधा के धनी हैं।
डॉ. मिश्रा बेहद शिष्ट और मृदुभाषी हैं। यह एक संयोग है कि साल 1978 में मैंने उन्हें बनासकांठा कलेक्टर का चार्ज सौंपा था। साल 2001 में मैंने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव पद पर भी उनका स्वागत किया। गुजरात विद्युत बोर्ड में बतौर सदस्य उन्होंने बोर्ड की अक्षमताओं और नुकसान के कारणों को चिह्नित किया और इनका निराकरण भी किया।
जनवरी-2001 के कच्छ भूकंप के समय डॉ. मिश्रा बतौर प्रमुख सचिव कृषि विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। तब उन्हें आपदा प्रबंधन की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने ये जिम्मेदारियां पूरी दक्षता के साथ निभाईं। राहत और पुनर्वास कार्य पर एक पुस्तक भी लिखी।
साल 2008 में गुजरात सरकार द्वारा गठित गुजरात आपदा प्रबंधन संस्थान के नेतृत्व की चुनौती स्वीकार की। संयुक्त राष्ट्र ने डॉ. मिश्रा को राहत पुनर्वास और आपदा प्रबंधन में उनके योगदान के लिए सम्मानित भी किया। गुजरात के कृषि विभाग के मुख्य सचिव के रूप में काम करते हुए डॉ. मिश्रा ने वर्षा आधारित खेती करने वाले किसानों की समस्याओं को समझा।
2004 में बतौर कृषि सचिव केन्द्र सरकार के साथ भी काम किया। हालांकि इससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के कार्यकाल के चलते उन्हें 'मोदी मैन' कह कर निशाना बनाया गया, जो गलत था। ऐसा कर उन्हें हाशिए पर धकेलने के प्रयास हुए, लेकिन डॉ. मिश्रा ने कभी कोई शिकायत नहीं की।
(जैसा उन्होंने भास्कर के चिंतन आचार्य को बताया)
बिजली बोर्ड में थे तो रियायतों के चलते रिलायंस पर सख्त हो गए थे
डॉ. मिश्रा जब प्रधानमंत्री मोदी के अतिरिक्त प्रमुख सचिव रहे तो उन्होंने दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग राज को खत्म कर दिया। खास बात ये है कि उनके कार्यकाल में किसी भी तरह की नियुक्ति आधिकारिक घोषणा से पहले लीक नहीं हुई। कैबिनेट की अपॉइंटमेंट कमेटी की सभी फाइलें इनसे होकर गुजरती थीं। नब्बे के दशक में जब वे गुजरात बिजली बोर्ड में थे तो एक बार उन्होंने रिलायंस ग्रुप पर सख्ती करते हुए कंपनी की रियायतों पर अपना रुख कड़ा कर लिया था। उन्होंने बीते वर्षों में पद्म पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में जरूरी बदलाव किए। इसे योग्यता आधारित बनाया। वे यूपीए-1 के समय एग्रीकल्चर सेक्रेटरी थे। उस समय उन्होंने फसल बीमा स्कीम का सुझाव दिया था। यूपीए और फिर मोदी सरकार ने भी उनके इस विचार पर काम किया।
2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा स्कीम शुरू हुई। डॉ. मिश्रा ओडिशा के संबलपुर के रहने वाले हैं और उन्होंने ससेक्स यूनिवर्सिटी से इकोनॉमी/डेवलप्मेंट स्टडीज में पीएचडी की है। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए भी किया है। उन्होंने जीएम कॉलेज (संबलपुर यूनिवर्सिटी) से ग्रेजुएशन किया है। 1970 में उन्होंने जब ग्रेजुएशन किया तो इकोनॉमिक्स में उनको डिसटिंक्शन मार्क्स मिले थे। ओडिशा की सभी यूनिवर्सिटी में वे अकेले थे, जो प्रथम श्रेणी में पास हुए थे।